अखिल भारतीय कतिया समाज महासंघ का- सैनिटरी नैपकिन प्रोजेक्ट
हम एक ऐसे देश में रहते हैं जैसा कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्र की महिलाये, बच्चिया यौवन की उम्र प्रसव (माहवारी) के दौरान खराब और गंधे कपडे का स्तेमाल करते आ रही है जिसके कारण विभिन्न प्रकार की बीमारियों और इंफेक्शन होने का खतरा बना रहता हैं। नवीनतम अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार, “सेनेटरी प्रोटेक्शन: एवरी वूमैन हैल्थ राइट”, एसी नीलसन द्वारा किए गए, ने खुलासा किया कि भारत की 355 मिलियन मासिक धर्म वाली महिलाये में से केवल 2 प्रतिशत सेनेटरी नैपकिन (एसएन) का उपयोग करती हैं। अपर्याप्त मासिक धर्म संरक्षण किशोर लड़कियों (आयु वर्ग 2-8 वर्ष) को एक महीने में स्कूल के 5 दिन (वर्ष में 50 दिन) याद आती है। 88% से अधिक महिलाये अस्वच्छ कपड़े, राख और भूसी रेत जैसे चौंकाने वाले विकल्पों का सहारा लेती हैं। इस अध्ययन से भारत में स्त्रैण स्वच्छता देखभाल की निराशाजनक स्थिति का पता चलता है और यह अनियंत्रित स्वच्छता प्रथाओं को दर्शाता है।
जब भारत में मासिक धर्म की बात आती है, तो कहानी भयानक होती है। महिलाये अपनी रक्षा के लिए चीर-फाड़ से लेकर गोबर तक उपलब्ध किसी भी चीज का इस्तेमाल्र करती हैं। वे शायद ही उन सावधानियों के बारे में जानते हैं जो मासिक धर्म के दौरान अपनाने के लिए आवश्यक हैं। खासकर छोटे और ग्रामीण इलाखे में “सैनिटरी नैपकिन” का उपयोग न करने का कारण खोजने की कोशिश की गई हैं। जिसमे आर्थिक और अज्ञानता के कारण से महिल्राएं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल नहीं करती है। “सेनेटरी नैपकिन प्रोजेक्ट” शुरू किया गया हैं जिसके तहत महिलाये को जागरूख किया जा रहा है।
इस परियोजना का पूरा उद्देश्य इस क्षेत्र की महिलाये को सेनेटरी नेफकिन का उपयोग करने के लिए जागरूक करने के साथ-साथ उन्हें आत्मनिर्भर बनने और मासिक धर्म से संबंधित सदियों पुराने मुद्दों को दूर करने में मदद करने के साथ समाप्त नहीं होता है।
इस बात को ध्यान में रखते हुए, हमने इस परियोजना को चलाने के लिए महिलाओं का एक स्वयं सहायता समूह बनाया जा रहा है। अब इस इकाई को समुदाय की महिलाये द्वारा पूरी तरह से चलाया और प्रबंधित किया जा रहा है।