प्राचीन इतिहास काठ काठी काठिया कतिया

इतिहास काठी,काठिया कतिया समाज

कठ गणराज्य (AS, p.127) प्राचीन पंजाब का प्रसिद्ध गणराज्य था। कठ लोग वैदिक आर्यों के वंशज थे। कहा जाता है कि कठोपनिषद के रचयिता तत्वदर्शी विद्वान् इसी जाति के रत्न थे।

अलक्षेंद्र के भारत पर आक्रमण के समय (327 ई. पू.) कठ गणराज्य रावी और व्यास नदियों के बीच के प्रदेश या माझा में बसा हुआ था। कठ लोगों के शारीरिक सौदंर्य और अलौकिक शौर्य की ग्रीक इतिहास लेखकों ने पूरी-पूरी प्रशंसा की है। अलक्षेंद्र के सैनिकों के साथ ये बहुत ही वीरतापूर्वक लड़े थे और सहस्त्रों शत्रु योद्धाओं को इन्होंने धराशायी कर दिया था जिसके परिणाम स्वरूप ग्रीक सैनिकों ने घबरा कर अलक्षेंद्र के बहुत कहने-सुनने पर भी व्यास नदी के पार पूर्व की ओर बढ़ने से साफ़ इनकार कर दिया था।

ग्रीक लेखकों के अनुसार कठों के यहाँ यह जाति प्रथा प्रचलित थी कि वे केवल स्वस्थ एवं बलिष्ठ संतान को ही जीवित रहने देते थे। ओने सीक्रीटोस लिखता है कि वे सुंदरतम एवं बलिष्ठतम व्यक्ति को ही अपना शासक चुनते थे।

पाणिनि ने भी कठों का कंठ या कंथ नाम से उल्लेख किया है।

ई.स. पूर्व ३२६ मे विश्व विजय के संकल्प को लेकर ग्रीस के राजा सिंकदर ने अनेक प्रदेशो को जीत का परचम लेहराकर भारत कि सीमा आ पहुंचा, यहा सम्राट पोरस के साथ हुवे युध्ध मे उसे परास्त होना पडा, लेकीन युनानी सिंकदर ने सम्राट पोरस से संधी की और दुसरे प्रदेशो पर आगे बढने के लिये अनुमती ले ली, जिसके बाद वो खेबरघाट को पार कर पंजाब के हाल के गुरदासपुर के नजदिक स्थित सांगाला मे आ पहुचा, जो उस काल मे काठी काठिया (कठ) क्षत्रीयो की राजधानी थी। काठी,काठिया (कठ) क्षत्रीय उपनीषदो मे श्रेष्ठ कठोपनीषद के रचेयता और भगवान सुर्य के प्रखर उपासक थे,  इस कारण जहा जहा उनकी रियासते थी वहा पर श्री सुर्यदेव के मंदिर अवश्य थे। हाल के पाकिस्तान मे स्थीत मुलतान (मुलस्थान) भी काठी,काठिया क्षत्रीयो का प्रमुख नगरथा।

सिंकदर ने सांगला मे धावा बोल दिया, लेकीन यहा पर भी संख्या मे कम होने के बावजुद काठी,काठिया (कठ) विरोने युनानी सैन्य को कडी टक्कर दिया, काठी,काठिया (कठ) सेना ने शंकट व्यूह (जिसमे गाडी के आकार की सेना रचकर सामने की  विशाल सेना के काफि भीतर घुसकर तबाहि किया जा सके) रचकर रोमन सैन्य को छिन्न भीन्न कर दिया और सिंकदर का सुरक्षा घेरा तोड लुणा बसीया और मोका बसीया दोनो सगे भाइओ ने उसको भाले के प्रहार से घायल कर दिया. एकाएक के प्रचड आक्रमण से युनानी काफि हता हत थे, कुछ विद्वानो के अनुसार सिंकदर की सहाय मे पोरस ने 5000 सैनीको का दल भेजा क्योकि पोरस और काठीयों,काठिया(कठ) के बिच मे भी शत्रुता थी, जिससे युनानी फिर से हमला करते और सांगला नगर ध्वंस होता।
 विद्वान यह भी कहते हैं कि चाणक्य ने ही इसके बाद पोरस को समझाया की वे सिंकदर से संधी तोडे और सिंकदर को भारत भूमि से चले जाने का आदेश दे और सिंकदर के सैनिक भी अब थकान से आगे बढने का साहस ही नहीं कर पा रहे थे।
इस घटना का वर्णन ग्रीक इतीहासकार स्ट्र्बो और एरीयन ने किया हैं, जिसमे उन्होने कठ,काठिया क्षत्रीयो के बारे मे कहा की वे अत्यंत लडाकु और जनुनी हैं, उनको “मुक्त भारतीय” कहा गया हैं, यानी उन्होने कभी किसी की दावेदारी स्वीकारी नहीं की
अपना नगर ध्वंस होने के बाद और युध्ध मे भारी नुकसान उठाने से काठी,काठिया (कठ) क्षत्रीयो ने पंजाब का त्याग कर दिय। क्रमश राजस्थान मे जेसलमेर, बिकानेर, जालोर मे कुछ समय बिताया, जालोर के जगभाण काठी जेसलमेर के स्थापक भाटी राजवि राव जेसलजी के साथ संघर्ष कर उनके दक्षिण पश्विम की भूमि जीत लेते हैं, जिससे जेसलजी के पुत्र शालीवाहन को गदी पर बैठते आते ही अपनी सैन्य शक्ति एकत्र कर संख्या उनसे संख्या मे कम काठी राओ श्री जगभाण काठी के खीलाफ अभीयान चलाते है, जिसमे राओ श्री जगभाणजी की मृत्यु होती हैं। गुजरात के कच्छ मे 600 सालो तक अंजार, बन्नी, पावरगढ, कंठकोट, भद्रेश्वर और कोटा मे राज्य स्थापीत किये थे। जाडेजा, वाघेला, चावडा राजपुतो के साथ गठबंधन भी किये थे। कच्छ मे 1200 साल पहले काठी,काठिया स्थापत्य कला का बेनमुन प्राचीन कंठकोट मंदिर अभी 2001 के भुंकप मे नष्ट हुआ. और अब कोटाय के सुर्यमंदिर का रिकन्स्ट्रक्शन हो रहा हैं। उसके बाद काठी,काठिया क्षत्रीयो ने गुजरात के सौराष्ट्र मे परचम लहराया था। अपने राज्य और संस्थान बनाये और यह पूरा प्रदेश आज “काठीयावाड” के नाम से प्रसिध्ध हैं जिसमे 5 राज्य, 51 संस्थान और कइ छोटी बडी जागीर, विराशत थी। कई  सदिया बीत गई अब तो मुलतान,ठट्टा, सांगला, सिंध पाकिस्तान मे हैं फिर भी भाट-चारण काठीयों,काठिया को आज भी “ठट्टा मुलतान के राय” कहकर उनको सन्मान देते हैं। कठ, काठिया क्षत्रीयो को सिंकदर से लडने के लिये मलावी, राष्ट्रिक, राठोड आदि राजपुतो का भी साथ मिला था, अगर इस विषय मे हमारे संशोधक निष्पक्ष होकर और गहन संशोधन कार्य करते हैं तो अवश्य कुछ और ऐतीहासीक तथ्य मिल सकते हैं। बरवाला स्टेट के चारण कविराज मेकरणभाइ लीला रचीत काठीयों  के गुणो के छंद में लिखते हैं :-

एक इंच धरती भी लेने के लिये यदि दुश्मन हरकत करे तो शुरविर काठी,काठिया यह होने नहीं  देता हैं। दुश्मन दल को मुल सहित उखाड फेक दे और धरती को रक्त के लाल रंग से भर दे, शंकर के गण जैसे अभयद्दानी, दान और आतीथ्य सत्कार मे उत्साहि, पवित्र और एकवचनी यह गुण है, जिनके अंगो मे आलस्य नहीं और सात सागर को पार कर ने का मनोबल, जो अपने वचन की खातीर खुद बिक जाये, जिनके पेरो मे कुल की लाज मर्यादा के लंगर बंधे हो, कभी अपश्बद का उच्चारण ना करे और शब्दो की  मधुरता से वातावरण मे खुश्बु की तरह फेले यह गुण हैं, किसी सत्ता के आगे ना जुके ना उनकि दाबेदारी स्वीकार की और हंमेशा स्वंतत्र रहना ही पंसद किया हैं, अपना देह, भूमि ,धन के अर्पण करे और कभी लोभ ना करे लेकीन दुश्मन से दर्ढता से रहे यहि पहचान हैं, काल ने किसे नही खाया, कर्ण ने क्या दान नही किया और काठीयों ने किसे नही  मारा? यह तीनो प्रश्न कभी किसी से पुछे नही  जाते हैं यह होते हैं शुरविर काठी,काठिया क्षत्रीय।  

इस प्रकार से प्राचीन प्रसिद्ध इतिहासकरों ने अपनी पुस्तक में और भटगांव के प्राचीन भटग्रन्थ साक्ष्य प्रमाण के आधार पर वर्णित काठ, काठी, काठिया, कतिया उत्पत्ति सभी समान और एक ही हैं। इस समान्यता के आधार पर गुजरात के काठी समाज से कतिया समाज की समानता मिलती है, जिससे निष्कर्ष निकलता हैं कि काठ, काठी, काठिया, कतिया सभी एक हैं। 

॥जय श्री सुर्यनारायण भगवान॥ ॥जय श्री महादेव॥ ॥जय भूराभगत॥ ॥जय काठीयावाड॥ ॥जय कतिया समाज॥

संकलनकर्ता:

एच.एस. महले (राजकुमार)

जबलपुर (म.प्र.) इंडिया